नवरात्रि का उत्सव और अनुष्ठान
नवरात्रि का उत्सव और उससे जुड़े अनुष्ठान पूरे भारत में विभिन्न प्रकार से मनाए जाते हैं, लेकिन सभी का मूल उद्देश्य देवी दुर्गा की उपासना, शक्ति की आराधना और आत्मिक शुद्धि होता है। यह उत्सव 9 दिनों तक चलता है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन एक विशेष अनुष्ठान और उत्सव से जुड़ा होता है। आइए, हम प्रमुख अनुष्ठानों और उत्सवों पर एक नज़र डालें:
1. कलश स्थापना (घटस्थापना):
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, जिसे घटस्थापना कहते हैं। इस अनुष्ठान में एक मिट्टी के घड़े (कलश) में जल भरकर उसके ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखे जाते हैं। यह कलश देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है।
घर के किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी में जौ बोए जाते हैं, जो समृद्धि और शांति के प्रतीक होते हैं। इन जौ के अंकुरण को अच्छा शगुन माना जाता है।
2. दुर्गा पूजन:
प्रत्येक दिन दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। भक्तजन देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने मंत्रोच्चारण, फूल अर्पण, धूप-दीप और भोग चढ़ाते हैं। हर दिन देवी के विभिन्न रूपों जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा होती है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करना और देवी के मंत्रों का जाप करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
3. उपवास (व्रत):
नवरात्रि के दौरान लोग उपवास रखते हैं, जो एक प्रमुख अनुष्ठान है। कुछ लोग पूरे नौ दिन का व्रत रखते हैं, जबकि कुछ विशेष दिन, जैसे अष्टमी या नवमी, को व्रत करते हैं।
उपवास के दौरान लोग केवल फलाहार करते हैं, और लहसुन, प्याज और अनाज से परहेज़ किया जाता है। इसे आत्मशुद्धि का एक माध्यम माना जाता है।
4. गरबा और डांडिया (गुजरात में):
गुजरात में नवरात्रि उत्सव के दौरान गरबा और डांडिया खेला जाता है, जो इस त्योहार का प्रमुख आकर्षण है। लोग पारंपरिक वस्त्र पहनकर समूह में गरबा नृत्य करते हैं, और डांडिया (लकड़ी की छड़ियों) के साथ नृत्य किया जाता है।
गरबा नृत्य के दौरान देवी की पूजा की जाती है और भक्ति गीत गाए जाते हैं।
5. रामलीला और दशहरा (उत्तर भारत में):
उत्तर भारत में, विशेषकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार में नवरात्रि के दौरान रामलीला का मंचन होता है। रामलीला के माध्यम से भगवान राम की कथा और रावण के साथ युद्ध का प्रदर्शन किया जाता है।
नवरात्रि के अंत में दशहरे के दिन रावण दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
6. कन्या पूजन (अष्टमी और नवमी पर):
अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का अनुष्ठान होता है, जिसे कंजक पूजन भी कहा जाता है। इसमें नौ कन्याओं (जो देवी के नौ रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं) का विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। उन्हें भोजन करवाया जाता है, और दक्षिणा, वस्त्र और उपहार दिए जाते हैं।
यह अनुष्ठान नारी शक्ति के सम्मान और उनकी पूजा के रूप में किया जाता है।
7. दुर्गा विसर्जन (नवमी या दशमी पर):
नवरात्रि के अंत में, नवमी या दशमी के दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के समय भक्तजन देवी की प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ जलाशय में विसर्जित करते हैं।
यह प्रक्रिया इस संदेश के साथ की जाती है कि देवी अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर वापस अपने दिव्य स्थान पर लौट रही हैं।
8. जगराता और कीर्तन:
कई स्थानों पर नवरात्रि के दौरान रात-भर जगराता (रात को जागकर देवी का भजन-कीर्तन) किया जाता है। इसमें भक्ति गीत, देवी स्तुतियां और जागरण होते हैं।
भक्तजन समूह में देवी दुर्गा के गीत गाते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी महिमा का बखान करते हैं।
9. विजयादशमी (दशहरा):
नवरात्रि के अंतिम दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है और रामलीला समाप्त होती है।
10. दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल में):
पश्चिम बंगाल में नवरात्रि का सबसे प्रमुख रूप दुर्गा पूजा है, जो विशेषकर सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को मनाई जाती है। इस दौरान देवी दुर्गा की विशाल प्रतिमाओं की पूजा की जाती है।
पूजा पंडालों में बड़ी धूमधाम से देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। नृत्य, संगीत, भोग और आरती के साथ यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
सार:
नवरात्रि उत्सव और उससे जुड़े अनुष्ठान केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं हैं, बल्कि यह आत्म-शुद्धि, नारी शक्ति का सम्मान, और जीवन में सकारात्मकता को अपनाने का प्रतीक हैं। नवरात्रि के ये अनुष्ठान हमें धैर्य, साहस, और आस्था के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
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