महिषासुर का आतंक
महिषासुर एक शक्तिशाली असुर (दानव) था, जिसने अपने बल और तपस्या से ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान के कारण उसे कोई देवता या पुरुष नहीं मार सकता था, केवल एक स्त्री ही उसका वध कर सकती थी। वरदान से प्राप्त शक्ति और अहंकार के कारण महिषासुर ने पूरे स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया।
महिषासुर का आतंक इस प्रकार फैला:
स्वर्ग पर अधिकार: महिषासुर ने स्वर्ग लोक पर हमला कर दिया और वहां के देवताओं को पराजित कर दिया। इंद्र, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं को स्वर्ग छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। स्वर्ग लोक पर उसका पूर्ण नियंत्रण हो गया।
पृथ्वी पर अत्याचार: महिषासुर ने पृथ्वी पर भी आतंक फैलाया। उसने निर्दोष लोगों पर अत्याचार किया, उन्हें प्रताड़ित किया और अपने दानवों की सेना से मानव जाति पर शासन करने लगा। उसकी क्रूरता और अत्याचारों से हर जगह भय का वातावरण फैल गया।
अहंकार और विनाश: महिषासुर के अत्याचार के कारण संत, ऋषि-मुनि और साधु-संत भी उसके भय से पूजा-पाठ और यज्ञ-हवन नहीं कर पा रहे थे। धार्मिक क्रियाएं बाधित हो गईं और धरती पर अधर्म और अराजकता फैल गई।
देवताओं की सहायता की गुहार: महिषासुर के आतंक से त्रस्त होकर देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए और उनसे सहायता की प्रार्थना की। देवताओं ने महसूस किया कि महिषासुर को मारने के लिए एक स्त्री शक्ति की आवश्यकता होगी, क्योंकि वह केवल स्त्री के हाथों ही मारा जा सकता था।
देवी दुर्गा का अवतार: महिषासुर के आतंक को समाप्त करने के लिए देवताओं की शक्तियों से देवी दुर्गा का प्राकट्य हुआ। देवी दुर्गा को महिषासुर ने पहले हल्के में लिया, लेकिन बाद में उनके अद्भुत शक्ति और साहस को देखकर उसे अहसास हुआ कि यह साधारण स्त्री नहीं हैं।
महिषासुर का वध: देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जो कई दिनों तक चला। अंततः देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धरती, स्वर्ग और पाताल को उसके आतंक से मुक्त किया।
महिषासुर के इस आतंक के अंत को प्रतीकात्मक रूप से असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की जीत और अधर्म पर धर्म की स्थापना के रूप में देखा जाता है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा और विजयादशमी (दशहरा) का पर्व महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय की याद में मनाया जाता है।
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